Tuesday, June 2, 2009

एक बार पुनः

Hi,


Today i was just browing through old mails, and found my old poems diary... thought about sharing it with you all....so here comes one pearl out of the ocean...


I wrote this poem when i was around 10-12 years old.... Saw almighty in dream one day and captured it in words.... for forever




एक बार पुनः

छाया था चहुँ ओर अँधेरा, जाने क्यूँ भय मुक्त थी मैं
खुली हुई थी पलकें मेरी यधपि, सुप्त थी मैं

पलकों की कतारों पर, जागी थी नीर प्यास
तोड़ हृदय की कैद को, घट घट मैं हुआ तेरा वास

तू ही आया नज़र मुझे, जहाँ भी गयी दृष्टी
तेरा साया लग रही थी, मुझको यह संपूर्ण सृष्टि

तेरी समक्षता का यकीन, दिया था दिल ने मुझे
अंतर्मन की रूह ने भी, महसूस किया था तुझे


अश्रू मोती नयन बंधन से, मुक्त हो गए बिखर
अधरों की मुस्कान ने, छूआ सर्वोच्च शिखर

शब्द नहीं थे लब पर, मगर चाह थी कहने की
थम गया था वक़्त भी वहीँ, छोड़ खूं बहने की
खूं - आदत /habit in urdu


तेरे समीप आयी थी मैं, अनेक प्रश्नों को लिए
गले लगी थी जब तेरे, मेरे आंसू धरा ने पिए


चूमा था मस्तक को तुने, देकर आर्शीवाद कई
वचन दिया था संग रहोगे, दिखाओगे राहें नयी

मगर अचानक हुआ यह क्या, उजाला उजाला छा गया
मिटाने इस अन्धकार को, शायद सूर्ये आ गया

सूर्ये के स्वागत हेतु मैंने, बिछा दी अपनी पलके
मगर यह क्या, क्यूँ फिर से यह नयन मेरे छलके


निगाहें गयीं हर दिशा में, मगर नज़र नहीं आया
तुझे तलाशा हर ओर मैंने, मगर कहीं नहीं पाया

शायद देख रही थी स्वपन , मैं जागती आँख से
छू रही थी आसमान को, पेड़ की शाख से

खवाब था हकीकत नहीं, अक्ल दोहराती रही
तनहा हैं राहें सभी, मुझको समझाती रही


मैं नहीं जानती खवाब था वो, या हकीकत का अर्श
है याद मुझे अब भी मगर, तेरा वो स्पर्शः


गर था वो खवाब कोई, तो क्यूँ है मुझको तेरा अहसास
और अगर थी वो हकीकत, तो क्यूँ नहीं तू मेरे पास



ऊतर इन प्रश्नों का मुझको
दिल ने बस यही दिया है,
एक बार पुनः तुमको पाकर
मैंने तो खो दिया है..






Have a gr8 day
&
Keep Smiling Alwayzzz
AkankshA

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